RAHU AND KETU राहु-केतु और डर
राहु-केतु और डर -
•• वो रात्रि में चौंक कर उठ बैठता था । फिर किसी कोने में छाये घुप्प अँधेरे को घूरने लगता था । अपने नींद से जाग जाने का उसको कोई कारण समझ नहीं आता था । लेकिन फिर उसके शरीर में एक सिहरन सी दौड़ने लगती थी और वो एक झुरझुरी लेकर उस हो रहे प्रभाव को समझने का प्रयास करता था । वो एक डर था - जिसे वो जानता नहीं था । वो एक योगी था जो डर को भूला चूका था लेकिन उस समय हो रहे डर के प्रभाव को समझने का प्रयास कर रहा था ।
उस पर राहु की दशा चल रही थी । उसका चंद्र - राहु-केतु के साथ था । वो जानता था - अंधेरे में हो रही गतिविधि का नाम राहु था, हवा में हो रही साँय-साँय का नाम राहु था । अचानक प्रकट हो गये प्रभाव का नाम राहु था ।
इसलिये जब-जब वो रात्रि को चौंक कर उठ बैठता था तो अँधेरे को घूरने लगता था । मानो उसे राहु दिख जाने वाला था ।
लेकिन वो उस डर के प्रभाव को अपने अंदर अलग से समझ सकता था । वो खुद से ही सवाल करता था कि - ये कहाँ से उसके अंदर आया था । उसे तो मृत्यु से भी डर नहीं लगता था । वो तो मृत्यु का अनुभव करने को उत्सुक था । फिर ये क्या था और कहाँ से आया था ।
बहरहाल, इस तरह की हरकतें करना साधारण दिलगुर्दे वाले व्यक्ति के बस की बात नहीं थी । साधारण व्यक्ति तो डर के मारे रात-रात भर सो नहीं पाते हैं । उन पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव होते हैं और वो अपनी मानसिक शक्ति से निर्बल होने लगते हैं । पागलपन, हिस्टीरिया और भूत-प्रेत की बातें ऐसे ही समय में जन्म लेती हैं ।
लेकिन वो योगी था । उसने ध्यान से असंख्य अनुभव बटोरे थे । उसकी पिट्यूटरी ग्लैण्ड से नीली चमक निकलकर आज्ञा-चक्र में जाती - उसने देखी थी । उसने आज्ञा-चक्र पर नीली ज्योति के फव्वारे फूटते देखे थे । उसके जीवात्मा को भृकुटियों के बीच देखा था । उसका आज्ञा-चक्र सक्रीय था, उसका स्वाधिष्ठान-चक्र सक्रीय था । वो लोगों को देखते ही उनके मन की बात जान लेता था ।
लेकिन वो डर - राहु-केतु का प्रभाव था जो उसके जन्म से उसके साथ था । उसके शरीर घड़ने में उसका हाथ था - आकाश-तत्व के रूप में वो उसके अंदर था । जन्म लेते ही पहली सांस के साथ वो उसमे समा गया था । उससे पीछा कहाँ छूटने वाला था । ध्यान, प्राणायाम तो उसने बहुत बाद में सीखा था ।
दरअसल - आधुनिक विज्ञान की दौड़ परमाणु तक ही है । इससे आगे उसकी खोज जारी है - इसलिये इस राहु-केतु के डर का आधुनिक विज्ञान के पास कोई उत्तर नहीं है । क्योंकि उसे आकाश-तत्व तक पहुचने में बहुत समय लगने वाला है और राहु-केतु आकाश-तत्व की एक कड़ी हैं ।
लेकिन ज्योतिष इसे खूब जानता है । ज्योतिष - वेदों की दृष्टी है और सुदूर आकाश में देखना और उसके तत्वों को खोज निकालना ही ज्योतिष-विज्ञान है ।
ज्योतिष देखता है कि - परमाणु के आगे रेणु है, रेणु के आगे त्रसरेणु है । त्रसरेणु के आगे सूक्ष्मातिसूक्ष्म अणु है और अंत में अंतिम परमाणु है । जो ठोस पदार्थ की अंतिम इकाई है । इसके बाद ये अंतिम इकाई एक लहर में बदल जाती है । यही लहर आकाश-तत्व है । मूलरूप से इसका काम है गति उत्पन्न करना ।
इस तरह विभिन्न शक्ति-पुंजों में, विभिन्न अदृश्य लहरों में और विभिन्न तालमेल के रूपों में ये आकाश-तत्व ब्रह्माण्ड में मौजूद रहता है ।
जब बच्चे का जन्म होता है और उसकी गर्भनाल कटते ही बच्चा पहली सांस लेता है तब नौ ग्रहों की नौ लहरें - आकाश-तत्व के रूप में बच्चे में प्रवेश कर जाती हैं । इसके बाद बच्चे में गति उत्पन्न होती है । वो रोने लगता है - अगर नहीं रोया तो उसका संपर्क पानी से करवाया जाता है ताकि बच्चे में गति प्रकट हो । अग्नि, पृथ्वी, वायु और जल के संपर्क में आते ही आकाश-तत्व गति उत्पन्न करता है । बच्चा अगर नहीं रोया तो उसे अतिरिक्त जल-तत्व के संपर्क में लाया जाता है ताकि उसमे प्रवेश हुआ आकाश-तत्व गति दर्शाये और बच्चा रोये ।
यही ग्रहों की नौ लहरें समय-समय पर दशाओं के रूप में शरीर में प्रकट होती है । किसी भी ग्रह की दशा के समय उसका प्रभाव रीढ़ की हड्डी में प्रकट होता है और शरीर की बहत्तर हज़ार नाड़ियों में फ़ैल जाता है और जातक उस ग्रह के प्रभाव में आ जाता है । अब जैसा उस ग्रह का प्रभाव होता है वैसी घटनाये, कार्य और निर्णय जातक के जीवन में होने लगते हैं ।
शरीर में अगर कोई व्यवधान आ जाये तो कोशिकायें, मस्तिष्क तक सन्देश पहुंचा देती है । फिर मस्तिष्क प्रतिक्रिया करता है और 'पीनियल-ग्लैण्ड' से न्यूरॉन्स निकलते हैं और व्यवधान की जगह का विश्लेषण करते है । इसके बाद ये न्यूरॉन्स, शरीर की प्रतिरोधक प्रणाली को सुचना दे देते हैं और शरीर की प्रतिरोधक क्षमता हरकत में आती है और व्यवधान दूर कर देती है । ये शरीर का स्वचालित नियम है ।
लेकिन जब किसी की कुंडली में राहु-केतु के साथ चंद्र हो और राहु-केतु के प्राभाव से पीड़ित हो रहा हो - ऐसे में राहु अथवा केतु की दशा आरम्भ हो जाये - सुषुम्ना में प्रकट होकर सब नाड़ियों में फ़ैल जाये ।
तब शरीर में बदलाव होना आरम्भ होता है, शरीर संवेदनशील हो जाता है, हर बात गहरे में असर करने लगती है । सोच बढ़ जाती है और अहित होने की शंकाये उठने लगती है । कोशिकायें इसका सन्देश भी मस्तिष्क को भेजती हैं और न्यूरॉन्स नाड़ियों की और लपकते हैं । लेकिन उन्हें कुछ नहीं मिलता है क्योंकि न्यूरॉन्स भले ही सूक्ष्म होते है लेकिन होते ठोस पदार्थ की इकाई ही है । न्यूरॉन्स एक सुई की नोक पर बीस हज़ार की तादात में आ जाते है लेकिन फिर भी उनका सामना एक अदृश्य लहर से होता है । जिसका उन्हें पता ही नहीं चलता और शरीर की प्रतिरोधक क्षमता धरी की धरी रह जाती है ।
जीवात्मा - शरीर को जीवंत बनाये रखने और उसे बलशाली बनाये रखने का मूल स्त्रोत है । इसका भोजन ज्ञान है और ज्ञान से इसकी जागरूकता बढ़ती है और इसकी जागरूकता से शरीर और ज्यादा जीवंत होता है तथा और ज्यादा बलवान होता है । मन, जीवात्मा की छाया है और इंद्रियों से रमण करता हुआ संतुष्टि तलाशता है । मन अर्थात चन्द्रमाँ । जब ये राहु-केतु से पीड़ित होता है तब इसकी रमण करने की गति शिथिल रहती है और इसकी चंचलता कम हो जाती है । क्योंकि मन, जीवात्मा की छाया है इसलिये मन का ये प्रभाव जीवात्मा पर भी पड़ता है ।
नौ ग्रहों में राहु-केतु के अलावा सात ग्रहों के भौतिक पिण्ड है । इसलिये जन्म के समय आकाश-तत्व की लहर के रूप में जब ये शरीर में प्रवेश करते हैं तब ठोस शरीर को आकार देने में इनका आकाश-तत्व, शरीर निर्माण के अणुओं में भी परिवर्तित हो जाता है और मन तथा जीवात्मा के लिये जाना पहचाना हो जाता है । लेकिन राहु-केतु का ठोस पिण्ड नहीं होता इसलिये ये आकाश-तत्व के रूप में ही शरीर में विद्यमान रहते हैं । फिर जब इनकी दशा चलती है तब ये शरीर के लिये जाने-पहचाने नहीं होते है । ऐसे में शरीर की सात अरब कोशिकाओं को जीवंत बना देने वाली जीवात्मा के लिये ये चुनौती की तरह प्रभाव दिखाते हैं । जीवात्मा भी अति-परिष्कृत आकाश-तत्व ही है । राहु-केतु का प्रभाव इसकी जगह लेने का प्रयास करता है । जिससे शरीर में सिरहन, कंपकपी, हिस्टीरिया, डर और पागलपन प्रकट होता है ।
हालांकि ये एक औसतन विश्लेषण है - किसकी कुंडली में राहु-केतु का कैसा प्रभाव होगा ये उस जातक की कुंडली से ही पता चलेगा । इसलिये कुंडली विश्लेषण सर्वोत्तम है ।
अन्य पोस्ट देखने के लिए HOME AND ASTRO LIST , MORE POST पर क्लिक करें
कुण्डली अध्ययन के लिए संपर्क करे
श्री संत ज्योतिष ज्ञान पीठ
पंडित प्रियेश मौद्गिल
Mobile No. +91 9996391452
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें