गायत्री के मूल ( ज्ञान,कर्म और उपासना )
ज्ञान,कर्म और उपासना ( गायत्री के मूल )
ॐ भूर् भुवः स्वः तत् सवितुर्वरेण्यं !
भर्गो देवस्य धीमहिधियो यो नः प्रचोदयात् !!
ज्ञान और उपासना ये तीनो ही गयात्री मन्त्र में विधमान है इसलिए महाऋषियों ने गायत्री मन्त्र को योगिक साधनो का मूलाधार बताया है कलयुग में गयत्री मंत्रो के द्वारा भी सर्वश्रष्ठ सिद्धियां प्राप्त की जा सकती है !
गयत्री मंत्रो को व्यास मुनि ब्रह्मा के सामान मानते है वह कहते है ब्रह्मा और गायत्री में कोई भिन्नता नहीं है !
देव मनु ने गायत्री को ब्रह्मा का मुख द्वार बताया है
प्रजापति ने इससे तीनो लोको का वैभव प्राप्त करने की घोषणा की है ! गायत्री को ही वेद माता कहा गया है !
यह वरों को देने वाली और आयु ,सन्तान ,धन ,अन्न ,वैभव ,यश-मान,देने वाली है !
जहाँ गायत्री का जप होता है वहां अबोध बालक नहीं मरते ऐंसा भीष्म पिताहमाहा ने 'महाभारत ' के अनुशासन पर्व में कहा है
और अंत में परम पिताः परमात्मा के दर्शन करवाने वाली है गायत्री !
दुनिया के दो सबसे अनमोल शब्द शान्ति और आनन्द !
तड़पती हुई दुनिया को शांति और आनन्द का मार्ग केवल ज्ञान,कर्म और उपासना है इसलिए वैदिक काल में जितनी भी उन्नति हुई उसका प्रयोग मानव शरीर को सुखी बनाने या नाश करने के लिए नहीं हुआ अपितु आत्मा और ज्ञान के लिए हुआ !
यह सर्वश्रष्ठ श्रुति है ! गायत्री सर्वभूतों का ह्रदय है यही कारण है कि इसे गुरुमन्त्र कहकर शेष सारे मंत्रों से विशेषता दे दी गई है !
सारी दुनिया सुख और शान्ति की खोज में दुःखीत और अशांत हो रही है , इसीलिए प्राचीन काल की भौतिक उन्नति ने उन लोगो को दुःखी नहीं किया ! हमारे पूर्वजो को वेद द्वारा यह ज्ञान प्राप्त था कि वह कोनसा साधन है जिसके द्वारा इस लोक के सारे वैभवो का मनुष्य आन्नद ले सकता है और साथ ही आत्मा को मोक्ष का आनंद प्राप्त कर सकता है !
ज्ञान क्या ? - ईश्वर जीव-प्रकृति का ज्ञान !
कर्म क्या ? - आत्मा के उधार के लिए शुभ कर्म !
उपासना क्या ? - आत्मा का परमात्मा से मिलाप !
और गायत्री मन्त्र इन तीनो का सार है !
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