नवम भाव भाग्य भाव जानकारी




नवम  भाव  भाग्य भाव 
जानकारी 
मित्रों अक्सर ज्योतिष से सम्बन्धित जो प्रश्न सबसे ज्यादा पूछा जाता है वो होता है की मेरा भविष्य क्या है ?
त्रिकोण का सबसे बली भाव जो जातक को उपर ले जाने में मदद करता है | केंद्र जातक का आधार स्तम्भ होता है तो त्रिकोण जातक को लिफ्ट देने वाला होता है | धर्म त्रिकोण का सबसे महत्वपूर्ण भाव नवम भाव | 
 कुंडली  में वैसे तो  हर भाव का  अपना अपना  विशेष  महत्व  होता  है  लेकिन नवम भाव  का महत्व एक  तरह  से  सबसे ज्यादा  होता  है |  ज्योतिष  की  लगभग  सभी  विधियों में नवम  भाव  को  भाग्य  भाव की  संज्ञा  दी  गई  | ये  भाव  हमारे  भाग्य  की बुनियाद  यानी की  नीव  होता  है  | हमारा  भाग्य  कैसा  है  भाग्य  का  जीवन  में कितना  साथ  मिलेगा  आदि   सभी  इसी  भाव  के  द्वारा  देखें  जाते है  | यदि इंसान  का  भाग्य अच्छा है  तो तो  उसे  अन्य सभी  भावों  के फल  आसानी  से  मिल जाते  है  और और  यदि भाग्य खराब  है  तो बड़ी  मेहनत के बाद भी  सफलता मिलनी  मुस्किल  हो  जाती है  |  यदि किसी  का भाग्य  भाव  अच्छा  है  तो उसे  उसकी  थोड़ी सी मेहनत का फल  कई गुना  मिलता  है  इसमें कोई शक नही | 
नवम भाव  धर्म कर्म दान पुण्य  का  भाव भी  कहलाता  है  | धर्म के प्रति हमारी  कितनी  आस्था है  दान  पुण्य  हम कितना करते है  धार्मिक  यात्रा  हम कितनी  कर सकते  है  इन सभी  बातों का अनुमान  भी इसी  भाव  से  लगाया जता  है  | हमारे  बड़े  बुज्रुगों  को भी ये  भाव  दर्शाता  है  और उनसे  हमे  मिलने  वाले  लाभ  को  भी येभाव  इंगित  करता  है  | 
मानसिक  रूप  से  ये  हमारी  जागृत  अवस्था  का कारक  है  ,  हम  अंदर  से कितने  रूहानी  हो  सकते  है  ,  कितने  आध्यात्मिक  परवर्ती के इंसान हम  हो सकते है , अध्यात्म   के छेत्र में हम किस  हद  तक जा  सकते  है  और उसमे  हमे  कितनी  सफलता  मिलेगी   उसे  ये   ही  भाव  दर्शाता  है  | हमारी  दूसरों के उपर  परोपकार  करने  की परवर्ती भी  इसी  भाव  पर  निर्भर  करती  है \
घर  में  हमारे  ये  उस  भाग  को  दर्शता  है  जिस  जगह  बैठकर  हम पूजा  पाठ करते है | मकान  के सम्बन्ध  में ये  हमारे  बड़े  बुजुर्गो  के मकान  के बारे में हमे  जानकारी  देता  है  \ 
पेड़ पोधो  के सम्बन्ध में ऐसे  पोधे  जिनके  फल उनकी  जड़  में लगते  है उसे  ये  भाव  दर्शाता  है  तो  पंछियों में ऐसे जो  पानी  के  उपर  तैरते  है | 
अधिकतर  ज्योतिष  ग्रंथो में इस  भाव  का  सम्बन्ध  हमारे  पिता  के  साथ   जोड़ा  गया  है  पिता  की  हालत  कैसी  होगी  उनका  आर्थिक  सिथ्ती  कैसी  होगी  आदि का अनुमान  इसी  भाव  से  लगाया  जाता है |  ये  भाव  हमारे  जीवन  की  व्य्यस्ता  और  संघर्ष  को  भी दर्शाता  है  जिसका कारण  ये है  की ये भाव हमारे  कर्म  भाव  का  व्यय  भाव  है  हम अपने  कर्मो  को किस  प्रकार  खर्च  करेंगे ] हमारे  कार्य  व्यर्थ जायेंगे  या  हम हमारा  कार्य  ज्यादा  व्यर्थ  की  चीजों  में खर्च  करेंगे  उन  सभी  पर  इस भाव  का  मुख्य  रूप  से प्रभाव  पड़ता  है  |  
पंचम  भाव से  पंचम होने  के कारण  ये  हमारी  पोत्र यानी  की  पुत्र  के  पुत्र  का भाव  भी  बन  जाता  है  तो साथ  ही  ये  हमारी तीसरी सन्तान  को  दर्शाने  वाला  भाव  भी  है  | साथ ही ये भाव उंच शिक्षा को भी दर्शाता है | यदि ये भाव दूषित होता है तो जातक को मास्टर डिग्री स्तर की शिक्षा में जाने पर बाधा का सामना करना है | 
सप्तम  भाव  से  तीसरा  भाव  होने  के कारण  जीवन साथी  के  साहस  और शोर्य को  ये भाव  दर्शाता है  तो माता  के भाव से  छटा  होने के कारण  माता  की  बीमारी  को  भी ये भाव  इंगित  करता  है  \  
मित्रों  ये  भाव  कुंडली के त्रिकोण भाव  में आता  है  और मह्रिषी  पराशर जी  ने कुंडली  में इस  भाव को  सबसे  ज्यादा महत्व  दिया  है  | त्रिकोनेश में इस  भाव  के  मालिक  का महत्व  अन्य  त्रिकोनेश  से  कुछ  न  कुछ  ज्यादा  ही  होता  है  तुलनात्मक  रूप  से  |  ये  ही  कारण   है  की  इस भाव  का  मालिक  जब  दशमेश  साथ  सम्बन्ध  बनता  है  तो  उसे  सबसे  बड़े  राजयोग  की  श्रेणी  में गिना  गया  है  \
इसिलिय किसी भी कुंडली में भाग्य का अध्ययन करने के लिय हमे ये देखना होता है की भाग्य भाव कैसा है उसके मालिक की सिथ्ती कुंडली में कैसी है , भाग्य भाव में कौन कौन से ग्रह सिथत है और भाग्य भाव पर कौन कौन से ग्रह की दृष्टी है | भाग्येश जिस भाव में होता है उस भाव से सम्बन्धित कारको के द्वारा भाग्य विरधी में सहायता के योग बनते है | भाग्य भाव से छ्टे आठवें और बारवें भाव में सिथत ग्रह भाग्य में रोड़े अटकाने का कार्य अक्सर करते है \ 
इस भाव का मालिक कुंडली के जिस भाव में बैठता है उस भाव से सम्बन्धित फल जातक  को आसानी से मिलने के योग बन जाते है | यदि भाग्येश सप्तम हो जातक को पत्नी के उपर जातक का भाग्य निर्भर करता है | साथ ही ये योग जातक को पत्नी के साथ से आध्यत्मिक जीवन में उन्नति के सिखर पर ले जाता है | यदि लग्नेश या लग्नेश का इस भाव के साथ सम्बन्ध बनता है तो जातक के जीवन में जब भी कोई समस्या आती है और वो अपने गुरु से उसका निवारण पूछकर करता है तो समस्या आसानी से दूर हो जाती है | 
ध्यान रखें इस भाव के ज्यादा शुभ फल आपको उसी दशा में ज्यादा मिलेंगे जब आप धर्म कर्मे के प्रति अपनी पूर्ण आस्था रखेगे , अपना आचरण सात्विक रखेंगे | 


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